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(A poem written by Anand Gupta depicting a new morning.)
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चंद्रबरदाई की एक कविता का अंश है यह, चाहें तो काव्य-कोश में फ़िलहाल इसे ही जोड़ सकते हैं ।
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स्वर्ण रश्मि नैनों के द्वारे<br>
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सो गये हैं अब सारे तारे<br>
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चाँद ने भी ली विदाई<br>
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देखो एक नयी सुबह है आई.<br>
  
पूरब दिसी गढ़ गढ़्नपति,समुद्र सिषर अति दुग्ग
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मचलते पंछी पंख फैलाते<br>
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ठंडे हवा के झोंके आते<br>
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नयी किरण की नयी परछाई<br>
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देखो एक नयी सुबह है आई. <br>
  
तहं सुर विजय सुर-राजपति,जादू कुलह अभग्ग
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कहीं ईश्वर के भजन हैं होते<br>
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लोग इबादत में मगन हैं होते<br>
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खुल रही हैं अँखियाँ अल्साई<br>
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देखो एक नयी सुबह है आई. <br>
  
हसम ह्य्ग्ग्य देई अति, पति सायर भ्रज्जाद
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मोहक लगती फैली हरियाली<br>
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होकर चंचल और मतवाली<br>
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कैसे कुदरत लेती अंगड़ाई<br>
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देखो एक नयी सुबह है आई. <br>
  
प्रबल भूप सेवहिं सकल,धुनि निसान बहु साद
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फिर आबाद हैं सूनी गलियाँ<br>
Ek phul ke chah  Subhdra kumari chauhan  ki kavita   
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खिल उठी हैं नूतन कलियाँ<br>
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फूलों ने है ख़ुश्बू बिखराई<br>
(१) होंगे वे कोइ और / श्री कृष्ण सरल
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देखो एक नयी सुबह है आई. <br>
(२) चंद्रसेन विराट की निम्न लिखित कविता
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****** तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये/थे कभी मुख पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये*******
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(२)
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आनंद गुप्ता

20:41, 26 अगस्त 2007 का अवतरण


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स्वर्ण रश्मि नैनों के द्वारे
सो गये हैं अब सारे तारे
चाँद ने भी ली विदाई
देखो एक नयी सुबह है आई.

मचलते पंछी पंख फैलाते
ठंडे हवा के झोंके आते
नयी किरण की नयी परछाई
देखो एक नयी सुबह है आई.

कहीं ईश्वर के भजन हैं होते
लोग इबादत में मगन हैं होते
खुल रही हैं अँखियाँ अल्साई
देखो एक नयी सुबह है आई.

मोहक लगती फैली हरियाली
होकर चंचल और मतवाली
कैसे कुदरत लेती अंगड़ाई
देखो एक नयी सुबह है आई.

फिर आबाद हैं सूनी गलियाँ
खिल उठी हैं नूतन कलियाँ
फूलों ने है ख़ुश्बू बिखराई
देखो एक नयी सुबह है आई.


आनंद गुप्ता