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+ | रे मन सब सों निरस ह्वै सरस राम सों होहि। | ||
+ | भलो सिखावन देत है निस दिन तुलसी तोहि।51। | ||
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+ | हरे चरहिं तापहिं बरे फरें पसाहिं हाथ। | ||
+ | तुलसी स्वारथ ीमत सब परमारथ रघुनाथ।52। | ||
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+ | स्वारथ सीता राम सों परमारथ सिय राम। | ||
+ | तुलसी तेरों दूसरे द्वार कहा कहु काम। 53। | ||
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+ | स्वारथ परमारथ सकल सुलभ एक ही ओर। | ||
+ | द्वार दूसरे दीनता उचित न तुलसी तोर।54। | ||
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+ | तुलसी स्वारथ राम हित परमारथ रघुबीर। | ||
+ | सेवक जाके लखन से पवनपूत रनधीर।55। | ||
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+ | ज्यों जग बैरी मीन को आपु सहित बिनु बारि । | ||
+ | त्यों तुलसी रघुबीर बिनु गति आपनी बिचारि।56। | ||
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+ | राम प्रेम बिनु दूबरो राम प्रेमहीं पीन। | ||
+ | रघुबर कबहुँक करहुगे तुलसिहि ज्यों जल मीन।57। | ||
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+ | राम सनेही राम गति राम चरन रति जाहि। | ||
+ | तुलसी फल जग जनम को दियो बिधाता ताहि।58। | ||
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+ | आपु आपने तें अधिक जेहि प्रिय सीताराम। | ||
+ | तेहि के पग की पानहीं तुलसी तनु को चाम।59। | ||
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+ | स्वारथ परमारथ रहित सीता राम सनेहँ । | ||
+ | तुलसी सेा फल चारि को फल हमार मत एहँ।60। | ||
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19:34, 12 मार्च 2011 के समय का अवतरण
दोहा संख्या 51 से 60
रे मन सब सों निरस ह्वै सरस राम सों होहि।
भलो सिखावन देत है निस दिन तुलसी तोहि।51।
हरे चरहिं तापहिं बरे फरें पसाहिं हाथ।
तुलसी स्वारथ ीमत सब परमारथ रघुनाथ।52।
स्वारथ सीता राम सों परमारथ सिय राम।
तुलसी तेरों दूसरे द्वार कहा कहु काम। 53।
स्वारथ परमारथ सकल सुलभ एक ही ओर।
द्वार दूसरे दीनता उचित न तुलसी तोर।54।
तुलसी स्वारथ राम हित परमारथ रघुबीर।
सेवक जाके लखन से पवनपूत रनधीर।55।
ज्यों जग बैरी मीन को आपु सहित बिनु बारि ।
त्यों तुलसी रघुबीर बिनु गति आपनी बिचारि।56।
राम प्रेम बिनु दूबरो राम प्रेमहीं पीन।
रघुबर कबहुँक करहुगे तुलसिहि ज्यों जल मीन।57।
राम सनेही राम गति राम चरन रति जाहि।
तुलसी फल जग जनम को दियो बिधाता ताहि।58।
आपु आपने तें अधिक जेहि प्रिय सीताराम।
तेहि के पग की पानहीं तुलसी तनु को चाम।59।
स्वारथ परमारथ रहित सीता राम सनेहँ ।
तुलसी सेा फल चारि को फल हमार मत एहँ।60।