भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लोकतन्त्र ख़ामोश है / कृष्ण कुमार यादव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण कुमार यादव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> लोकतन्त्र ख…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:34, 15 मार्च 2011 के समय का अवतरण
लोकतन्त्र ख़ामोश है
हर किसी ने उसे
आगे कर दिया है ढाल की तरह ।
लोकतंत्र की आड़ में
रोज़ बदलते हैं पाले
गिरती हैं सरकारें
पर लोकतंत्र ख़ामोश है।
किस-किस को चुप कराए ये लोकतन्त्र
पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, ईराक
और भी न जाने कितने देश
इसका मुलम्मा चढ़ाकर
इसे ही चिढ़ाए जा रहे हैं
हर कहीं, लोकतंत्र लाने की ख़ातिर
घोंटा जा रहा है
लोकतंत्र का ही गला
पर लोकतंत्र ख़ामोश है ।