भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विज्ञापनों का गोरखधंधा / कृष्ण कुमार यादव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण कुमार यादव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> विज्ञापनों …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:49, 15 मार्च 2011 के समय का अवतरण
विज्ञापनों ने ढँक दिया है
सभी बुराईयों को
हर रोज़ चढ़ जाती हैं उन पर
कुछ नामी-गिरामी चेहरों की परतें
फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है
उसमें कीडे़ हों या कीटनाशक
या चिल्लाए कोई सुनीता नारायण
पर इन नन्हें बच्चों को कौन समझाए
विज्ञापनों के पीछे छुपे पैसे का सच
बच्चे तो सिर्फ टी०वी० और बड़े परदे
पर देखे उस अंकल को ही पहचानते हैं
ज़िद करते हैं
उस सामान को घर लाने की
बच्चे की ज़िद के आगे
माँ-बाप भी मज़बूर हैं
ऐसे ही चलता है
विज्ञापनों का गोरखधंधा ।