भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मत बुझना / रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
 
|रचनाकार=रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
}}{{Template:KKAnthologyDiwali}}
+
}}{{KKAnthologyDiwali}}
 
<poem>
 
<poem>
 
रात अभी आधी बाकी है  
 
रात अभी आधी बाकी है  

18:39, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण

रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन

चाँद चाँदनी की मुरझाई
छिपा चाँद यौवन का तुममें
आयु रागिनी भी अकुलाती
रह रहकर बिछुड़न के भ्रम में
जलते रहे स्नेह के क्षण ये
जीवन सम्मुख है ध्रुवतारा
तुम बुझने का नाम लेना
जब तक जीवन में अँधियारा

अपने को पीकर जीना है
हो कितना भी सूनापन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन

तुमने विरहाकुल संध्या की
भर दी माँग अरुणिमा देकर
तम के घिरे बादलों को भी
राह दिखाई तुमने जलकर
तुम जाग्रत सपनों के साथी
स्तब्ध निशा को सोने देना
धन्य हो रहा है मेरा विश्वास
तुम्ही से पूजित होकर

जलती बाती मुक्त कहाती
दाह बना कब किसको बंधन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन