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"पर्वत पर आग जला... / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
 
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पर्वत पर आग जला बासन्ती रात में
 
पर्वत पर आग जला बासन्ती रात में
 
 
नाच रहे हैं हम-तुम हाथ दिए हाथ में
 
नाच रहे हैं हम-तुम हाथ दिए हाथ में
 
  
 
धन मत दो, जन मत दो
 
धन मत दो, जन मत दो
 
 
ले लो सब ले लो
 
ले लो सब ले लो
 
 
आओ रे लाज भरे
 
आओ रे लाज भरे
 
 
खेलो सब खेलो
 
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होठों पर वंशी हो, हवा हँसे झर-झर
 
होठों पर वंशी हो, हवा हँसे झर-झर
 
 
पास भरा पानी हो, हाथों में मादर
 
पास भरा पानी हो, हाथों में मादर
 
  
 
फिर बोलो क्या रखा
 
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दुनिया की बात में ?
 
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हाथ दिए हाथ में
 
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00:29, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण

पर्वत पर आग जला बासन्ती रात में
नाच रहे हैं हम-तुम हाथ दिए हाथ में

धन मत दो, जन मत दो
ले लो सब ले लो
आओ रे लाज भरे
खेलो सब खेलो
होठों पर वंशी हो, हवा हँसे झर-झर
पास भरा पानी हो, हाथों में मादर

फिर बोलो क्या रखा
दुनिया की बात में ?
हाथ दिए हाथ में