"होली-7 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी }} Category:नज़्म {{KKAnthologyHoli}} <poem> जब फागु…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
और दफ़ (चंग) के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की । | और दफ़ (चंग) के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की । | ||
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की । | परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की । | ||
− | ख़म | + | ख़म<ref>सुराही</ref> शीशए, जाम<ref>शराब का प्याला</ref> छलकते हों तब देख बहारें होली की । |
− | महबूब नशे में छकते | + | महबूब नशे में छकते<ref>मस्त हों, बहकते हों</ref> हों तब देख बहारें होली की ।।1।। |
− | हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुलरू | + | हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुलरू<ref>फूलों जैसी सुंदर, सुकोमल और सुकुमार मुखड़े वाली नायिका</ref> रंग भरे । |
कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़ो-अदा के ढंग भरे । | कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़ो-अदा के ढंग भरे । | ||
− | दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे । | + | दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग<ref>गान</ref> भरे । |
कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुँहचंग भरे । | कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुँहचंग भरे । | ||
कुछ घुँघरू ताल झनकते हों तब देख बहारें होली की ।।2।। | कुछ घुँघरू ताल झनकते हों तब देख बहारें होली की ।।2।। | ||
− | सामान जहाँ तक होता है इस इशरत के मतलूबों का | + | सामान जहाँ तक होता है इस इशरत<ref>सुख, आनन्द, ख़ुशी</ref> के मतलूबों<ref>इच्छुक, प्रेमी</ref> का । |
− | वो सब सामान | + | वो सब सामान मुहैया हो और बाग़ खिला हो ख़ूबों (सुंदरियों) का । |
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का । | हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का । | ||
इस ऐश मज़े के आलम में इक ग़ोल खड़ा महबूबों का । | इस ऐश मज़े के आलम में इक ग़ोल खड़ा महबूबों का । | ||
कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें होली की ।।3।। | कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें होली की ।।3।। | ||
− | गुलज़ार खिले हों परियों के, और मजलिस की तैयारी हो । | + | गुलज़ार<ref>बाग़</ref> खिले हों परियों के, और मजलिस की तैयारी हो । |
कपड़ों पर रंग के छीटों से ख़ुशरंग अजब गुलकारी हो । | कपड़ों पर रंग के छीटों से ख़ुशरंग अजब गुलकारी हो । | ||
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हों, और हाथों में पिचकारी हो । | मुँह लाल, गुलाबी आँखें हों, और हाथों में पिचकारी हो । | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
मुँह जिसका चाँद का टुकड़ा हो औऱ आँख भी मय की प्याली हो । | मुँह जिसका चाँद का टुकड़ा हो औऱ आँख भी मय की प्याली हो । | ||
बदमस्त, बड़ी मतवाली हो, हर आन बजाती ताली हो । | बदमस्त, बड़ी मतवाली हो, हर आन बजाती ताली हो । | ||
− | मयनोशी | + | मयनोशी<ref>शराबनोशी</ref> हो बेहोशी हो 'भड़ुए' की मुँह में गाली हो । |
− | भड़ुए भी भड़ुवा बकते हों, तब देख बहारें होली की ।।5।। | + | भड़ुए<ref>वेश्याओं के साथ नकल करने वाले</ref> भी भड़ुवा<ref>मज़ाक</ref> बकते हों, तब देख बहारें होली की ।।5।। |
− | और एक तरफ़ दिल लेने को महबूब भवैयों के लड़के । | + | और एक तरफ़ दिल लेने को महबूब भवैयों<ref>भावपूर्ण ढंग से नाचने वाले</ref> के लड़के । |
हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट-घट के कुछ बढ़-बढ़ के । | हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट-घट के कुछ बढ़-बढ़ के । | ||
कुछ नाज़ जतावें लड़-लड़ के कुछ होली गावें अड़-अड़ के । | कुछ नाज़ जतावें लड़-लड़ के कुछ होली गावें अड़-अड़ के । | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
यह धूम मची हो होली की और ऐश मज़े का छक्कड़ हो । | यह धूम मची हो होली की और ऐश मज़े का छक्कड़ हो । | ||
उस खींचा-खींच घसीटी पर और भडुए रंडी का फक्कड़ हो । | उस खींचा-खींच घसीटी पर और भडुए रंडी का फक्कड़ हो । | ||
− | माजून( | + | माजून(कुटी हुई दवाओं को शहद या शंकर क़िवाम में मिलाकर बनाया हुआ अवलेह) शराबें, नाच, मज़ा और टिकिया<ref>चरस गांजे वगैरह की टिकिया जो चिलम में रखकर पीते हैं</ref>, सुलफ़ा<ref>चरस</ref>, कक्कड़<ref>जल्द सुलग जाने के लिए, गीले और सूखे तम्बाकू को मिलाकर भुरभुरा बनाया बनाया हुआ तम्बाकू</ref> हो । |
लड़-भिड़के 'नज़ीर' फिर निकला हो कीचड़ में लत्थड़-पत्थड़ हो । | लड़-भिड़के 'नज़ीर' फिर निकला हो कीचड़ में लत्थड़-पत्थड़ हो । | ||
जब ऐसे ऐश झमकते हों तब देख बहारें होली की ।।7।। | जब ऐसे ऐश झमकते हों तब देख बहारें होली की ।।7।। | ||
</poem> | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} | ||
+ | <ref></ref> |
14:51, 20 मार्च 2011 का अवतरण
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की ।
और दफ़ (चंग) के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की ।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की ।
ख़म<ref>सुराही</ref> शीशए, जाम<ref>शराब का प्याला</ref> छलकते हों तब देख बहारें होली की ।
महबूब नशे में छकते<ref>मस्त हों, बहकते हों</ref> हों तब देख बहारें होली की ।।1।।
हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुलरू<ref>फूलों जैसी सुंदर, सुकोमल और सुकुमार मुखड़े वाली नायिका</ref> रंग भरे ।
कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़ो-अदा के ढंग भरे ।
दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग<ref>गान</ref> भरे ।
कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुँहचंग भरे ।
कुछ घुँघरू ताल झनकते हों तब देख बहारें होली की ।।2।।
सामान जहाँ तक होता है इस इशरत<ref>सुख, आनन्द, ख़ुशी</ref> के मतलूबों<ref>इच्छुक, प्रेमी</ref> का ।
वो सब सामान मुहैया हो और बाग़ खिला हो ख़ूबों (सुंदरियों) का ।
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का ।
इस ऐश मज़े के आलम में इक ग़ोल खड़ा महबूबों का ।
कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें होली की ।।3।।
गुलज़ार<ref>बाग़</ref> खिले हों परियों के, और मजलिस की तैयारी हो ।
कपड़ों पर रंग के छीटों से ख़ुशरंग अजब गुलकारी हो ।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हों, और हाथों में पिचकारी हो ।
उस रंग भरी पिचकारी को, अँगिया पर तककर मारी हो ।
सीनों से रंग ढलकते हों, तब देख बहारें होली की ।।4।।
इस रंग रंगीली मजलिस में, वह रंडी नाचने वाली हो ।
मुँह जिसका चाँद का टुकड़ा हो औऱ आँख भी मय की प्याली हो ।
बदमस्त, बड़ी मतवाली हो, हर आन बजाती ताली हो ।
मयनोशी<ref>शराबनोशी</ref> हो बेहोशी हो 'भड़ुए' की मुँह में गाली हो ।
भड़ुए<ref>वेश्याओं के साथ नकल करने वाले</ref> भी भड़ुवा<ref>मज़ाक</ref> बकते हों, तब देख बहारें होली की ।।5।।
और एक तरफ़ दिल लेने को महबूब भवैयों<ref>भावपूर्ण ढंग से नाचने वाले</ref> के लड़के ।
हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट-घट के कुछ बढ़-बढ़ के ।
कुछ नाज़ जतावें लड़-लड़ के कुछ होली गावें अड़-अड़ के ।
कुछ लचकें शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन फ़ड़के ।
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारें होली की ।।6।।
यह धूम मची हो होली की और ऐश मज़े का छक्कड़ हो ।
उस खींचा-खींच घसीटी पर और भडुए रंडी का फक्कड़ हो ।
माजून(कुटी हुई दवाओं को शहद या शंकर क़िवाम में मिलाकर बनाया हुआ अवलेह) शराबें, नाच, मज़ा और टिकिया<ref>चरस गांजे वगैरह की टिकिया जो चिलम में रखकर पीते हैं</ref>, सुलफ़ा<ref>चरस</ref>, कक्कड़<ref>जल्द सुलग जाने के लिए, गीले और सूखे तम्बाकू को मिलाकर भुरभुरा बनाया बनाया हुआ तम्बाकू</ref> हो ।
लड़-भिड़के 'नज़ीर' फिर निकला हो कीचड़ में लत्थड़-पत्थड़ हो ।
जब ऐसे ऐश झमकते हों तब देख बहारें होली की ।।7।।
<ref></ref>