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"दीमकें / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

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20:29, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

बहुत तेज़ी से हमला करती हैं
दीमकें

ऊपरी तौर पर दिखाई नहीं देतीं
मगर भीतर ही भीतर खोखला
कर देती हैं इनसान को

किसी दिन हवा के हल्के
झोंके से बालू के टीले-सा
भरभराकर गिर पड़ता है

फिर कभी न उठ पाने के लिए ।