भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धूप के टुकड़े / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:52, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
छाँव को तलाशते
धूप के न जाने कितने टुकड़े
इकट्ठे हैं मेरे पास
क्या करूँगी इनका
सहेजकर रखने पर
टुकड़े
और भी तीखापन
ज़ाहिर करते हैं ।