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"पलकों के भीतर / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

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21:02, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

एक धीमी न सुनाई देने वाली चीख़
निरन्तर गूँज रही है वजूद में मेरे
उमड़ता है हृदय, हृदय में ही

समन्दर ठाठें मारता है पलकों के भीतर ही
देह थरथराती है एक अनजाने वेग से

होंठ बीनते हैं एक पैग़ाम
जो ख़्वाहिशों के साथ
चाँद पर उतर जाते हैं बेहद ख़ामोशी से

अदृश्य नहीं हैं वे
मगर नज़र नहीं आते हैं
जबकि होते हैं वे
जीवन का सबसे अहम हिस्सा ।