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"यही जो आज इस बस्ती के लोगों को खले होंगे / शतदल" के अवतरणों में अंतर

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22:08, 25 मार्च 2011 का अवतरण

यही जो आज इस बस्ती के लोगों को खले होंगे ।
ये आदमख़ोर जंगल में नहीं घर में पले होंगे ।

बरहना द्रौपदी के नाम महलों से गुफ़ाओं तक
उसी तहजीब के भूखे करोड़ों सिलसिले होंगे ।

जिन्हें हम भक्ति से जाकर चढ़ा आए शिवालों में
वो सिक्के खूब कोठों पर खनाखन-खन चले होंगे ।

तुम्हारे आईनों में शक़्ल क्या हमको दिखे अपनी
कि इनकी आदतों में हुस्न के सब चोंचले होंगे ।

हमारी कौम ने जो बाग़ सींचे थे लहू देकर
तुम्हारी हद में वो बेसाख़्ता फूले-फले होंगे।