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"वसन्त की रात-1 / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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19:16, 28 मार्च 2011 का अवतरण

खिड़की के पास खड़ी होकर
वो चांद पकड़ना चाहे
फैली थी वितान में ऊपर
उसकी दो पतली बाहें

चमक रहा था उसका चेहरा
थी वसन्त की रात
चेहरे पर बरस रहा था उसके
चन्द्रकिरणों का प्रपात