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19:27, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
अंगड़ाई ले रही है प्रकृति नटी की देह
होली आ गई!
बौराई हवा दे गई सन्देश,
होली आ गई!
जल उठे जंगल में पलाश
जागी है मन में नई आस,
मुस्कराए अमलतास।
होली आ गई!
जल गया जो था अशुभ
असुन्दर, अतीत।
मन में रच गई नई प्रीत
होली आ गई!
रंगों की भरकर पिचकारी
साजन ने मुझपर मारी
बोले, तू क्यों खड़ी मुँह फेर?
होली आ गई!