भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"केवल एक शरीर / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:06, 3 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

तुम्हारी नज़र में
एक लड़की नहीं हूँ मैं

एक भावना नही हूँ मैं
एक सौन्दर्य नहीं हूँ मैं
केवल एक शरीर हूँ मैं
एक परछाईं हूँ मैं
जिस पर से गुज़रकर
हर कोई चलना चाहता है

एक निःस्वार्थ भावना की
आकांक्षा होती है जब
तब स्वार्थ की अनंत
पगडंडियाँ डेल्टा बनातीं
हैं आलोक पथ में, भटकने लगती हैं
परछाई वजूद से अपने
क़तरा-क़तरा
गिरने लगती है हर शै
धार के मरुस्थल में

जहाँ तृष्णा है अनंत तृष्णा !!