भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"श्वेत दीवार पर / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:11, 3 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

समय के ताक पर रखा स्मृतियों का ढेर
न जाने क्यों तबदील हो रहा है
रक्तवर्ण में

ताक़ से सटी उस श्वेत दीवार
पर, जहाँ पहले से ही स्मृतियों के तमाम
अवशेष-चिह्न अंकित हैं प्रागैतिहासिक
चित्रों से, जो आज भी उतने ही
समकालीन हैं

अब स्मृतियों का दूसरा स्तर भी अंकित हो
जाएगा उन शैलचित्रो-सा जिनमें
प्रथम स्तर के चित्रों पर इच्छाओं के
रंग चढ़ाकर पुनः दूसरे स्तर पर
चित्रों को अंकित किया गया

नगर प्रथम स्तर के चित्रों का धुँधलापन
आज भी शेष है ।