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"महाकाव्य / वंदना केंगरानी" के अवतरणों में अंतर
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08:40, 4 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
मैं महाकाव्य लिख रही हूँ
सैंडिल पर पालिश करते हुए
नहाते हुए
बस पकड़ते हुए
बॉस की डाँट खाते हुए
रोज़ शाम दिन—भर की थकान
मिटाने का बेवजह उपक्रम करते
चाय पीते
तुम्हें याद करते हुए
महाकाव्य लिख रही हूँ !