भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मृत्यु-2 / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
[[Category:रूसी भाषा]] | [[Category:रूसी भाषा]] | ||
− | {{ | + | {{KKAnthologyDeath}} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
गीली धरती की सहोदरा, उसका एक ही काम | गीली धरती की सहोदरा, उसका एक ही काम |
01:45, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
|
गीली धरती की सहोदरा, उसका एक ही काम
रुदन यहाँ होता रहे, हर दिन सुबह-शाम
रात-दिन जीवित लोगों का करती वह शिकार
मृतकों के स्वागत में खोले मृत्युलोक के द्वार
स्त्री वह ऎसी इत्वरी<ref>अभिसारिका</ref> कि उससे प्रेम अपराध
जिसे जकड़ ले भुजापाश में, उसका होता श्राद्ध
देश भर में फैल गए हैं, अब उसके दूत अनेक
छवि है उनकी देवदूत की और डोम का गणवेश
जनकल्याण की बात करें वे, वादा करें सुख का
कसमसाकर रह जाता जन, ये फन्दा हैं दुख का
यंत्रणा देते हमें उत्पीड़क ये, उपहार में देते मौत
देश को मरघट बना रही है, जीवन की वह सौत
शब्दार्थ
<references/>
रचनाकाल : 4 मई 1937