"मौत / मुईन अहसन जज़्बी" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (मौत / मुईन अह्सन जज़्बी moved to मौत / मुईन अहसन जज़्बी) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=मुईन अह्सन जज़्बी | |रचनाकार=मुईन अह्सन जज़्बी | ||
− | }} | + | }} {{KKAnthologyDeath}} |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं<br> | अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं<br> | ||
अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं<br> | अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं<br> |
02:05, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं
अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं
और एक जाम-ए-मए तल्ख़ चढ़ा लूं तो चलूं
अभी चलता हूं ज़रा ख़ुद को संभालूं तो चलूं
जाने कब पी थी अभी तक है मए-ग़म का ख़ुमार
धुंधला धुंधला सा नज़र आता है जहाने बेदार
आंधियां चल्ती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार
आंख तो मल लूं, ज़रा होश में आ लूं तो चलूं
वो मेरा सहर वो एजाज़ कहां है लाना
मेरी खोई हुई आवाज़ कहां है लाना
मेरा टूटा हुआ साज़ कहां है लाना
एक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूं तो चलूं
मैं थका हारा था इतने में जो आए बादल
किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल
उफ़ वह रंगीं पुर-असरार ख़यालों के महल
ऐसे दो चार महल और बना लूं तो चलूं
मेरी आंखों में अभी तक है मोहब्बत का ग़ुरूर
मेरे होंटों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर
मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर
ऐसे वहमों से ख़ुद को निकालूं तो चलूं