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"आएगी मौत बग़ैर आहट / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

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02:08, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

पंगत में मिली ज़िन्दगी
होगा कहीं कोई उत्सव, कोई भोज
तब बैठेगी ज़िन्दगी पंगत में

ख़त्म होगा उत्सव तो नष्ट हो
जाएगी ज़िन्दगी की नन्हीं सी ख़ुशी
जो पंगत में बैठने से मिली थी

लेकिन ज़िन्दगी क़तार नहीं है
जो ब्रह्माण्ड के एक छोर से
दूसरे छोर तक मज़बूती से
पाँव जमाए खड़ी रहे,

आएगी मृत्यु बग़ैर आहट
दबे पाँव
टूट जाएगी ज़िन्दगी की क़तार

बड़ी सरलता से स्वतः ही ।