भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 7" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
'''भाग-2 अयोध्या काण्ड प्रारंभ '''
 
   
 
   
1'''(वनगमन ) '''  
+
'''(वनगमन ) '''  
  
 
  कीरके कगार ज्यों नृपचीर, बिभूषन उप्पम अंगनि पाई।  
 
  कीरके कगार ज्यों नृपचीर, बिभूषन उप्पम अंगनि पाई।  

20:07, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

भाग-2 अयोध्या काण्ड प्रारंभ
 
(वनगमन )

 कीरके कगार ज्यों नृपचीर, बिभूषन उप्पम अंगनि पाई।

औध तजी मगवासके रूख ज्यों,पंथके साथ ज्यों लोग लोगाई।।

 संग सुबंधु, पुनीत प्रिया, मनो धर्मु क्रिया धरि देह सुहाई।।
 
राजिवलोचन रामु चले तजि बापको राजु बटाउ कीं नाई।1।


कागर कीर ज्यों भूषन-चीर सरीरू लस्यो तजि नीरू ज्यों काई।

मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभायँ सनेह सगाई।।

संग सुभासिनि, भाइ भलो, दिन द्वै जनु औध हुते पहुनाई।।

राजिवलोचन रामु चले तजि बापको राजु बटाउ कीं नाई।2।


सिथिल सनेह कहैं कौसिला सुमित्राजू सों,

मैं न लखी सौति, सखी! भगनी ज्यों सेई है।

कहै मोहि मैया, कहौं -मैं न मैया, भरतकी,

बलैया जेहौं भैया, तेरी मैया कैकेई है।।

 तुलसी सरल भायँ रघुरायँ माय मानी,

 काय-मन-बानीहूँ न जानी कै मतेई है।

बाम बिधि मेरो सुखु सिरिस -सुमन -सम,

ताकेा छल-छुरी कोह-कुलिस लै टेई है।3।


कीजै कहा, जीजी जू! स्ुमित्रा परि पायँ कहै,

तुलसी सहावै बिधि, सोइ सहियतु है।

रावरो सुभाउ रामजन्म ही तेें जानियत,

भरतकी मातु केा कि ऐसो चहियतु है।।

जाई राजघर, ब्याहि आई राजघर माहँ,

 राज-पूतु पाएहँू न सुखु लहियतु हैं।

देह सुधागेह, ताहि मृगहूँ मलीन कियो,
 
ताहू पर बाहु बिनु राहु गहियतु है।4।