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"वृन्द के दोहे / भाग ३" के अवतरणों में अंतर

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क्यों कीजे ऐसो जतन, जाते काज न होय । <br>
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हीन अकेलो ही भलो , मिले भले नहिं  दोय । <br>
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फल बिचार कारज करौ ,करहु नव्यर्थ अमेल । <br>
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तिल ज्यौं बारू पेरिये,नाहीं  निकसै तेल  ॥  27<br>
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ताको अरि का करि सकै ,जाकौ जतन उपाय ।<br>
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हिये दुष्ट के बदन तैं , मधुर न निकसै बात ।<br>
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जैसे  करुई बेल   के ,को मीठे फल खात   ॥29<br>
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जैसे  करुई बेल के, को मीठे फल खात ॥ 29<br><br>
  
ताही को करिये जतन ,रहिये जिहि आधार ।<br>
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ताही को करिये जतन, रहिये जिहि आधार ।<br>
को काटै ता डार को ,बैठै जाही डार ॥30<br>
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को काटै ता डार को, बैठै जाही डार ॥ 30<br><br>

02:04, 20 जून 2007 का अवतरण

नीति के दोहे

कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर ।
समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचौ नीर ॥21

उद्यम कबहूँ न छाड़िये, पर आसा के मोद ।
गागर कैसे फोरिये, उनयो देकै पयोद ॥22

क्यों कीजे ऐसो जतन, जाते काज न होय ।
परबत पर खोदै कुआँ, कैसे निकरै तोय ॥ 23

हितहू भलो न नीच को, नाहिंन भलो अहेत ।
चाट अपावन तन करै, काट स्वान दुख देत ॥ 24

चतुर सभा में कूर नर, सोभा पावत नाहिं ।
जैसे बक सोहत नहीं, हंस मंडली माहिं ॥ 25

हीन अकेलो ही भलो, मिले भले नहिं दोय ।
जैसे पावक पवन मिलि, बिफरै हाथ न होय ॥ 26

फल बिचार कारज करौ, करहु नव्यर्थ अमेल ।
तिल ज्यौं बारू पेरिये, नाहीं निकसै तेल ॥ 27

ताको अरि का करि सकै, जाकौ जतन उपाय ।
जरै न ताती रेत सों, जाके पनहीं पाय ॥ 28

हिये दुष्ट के बदन तैं, मधुर न निकसै बात ।
जैसे करुई बेल के, को मीठे फल खात ॥ 29

ताही को करिये जतन, रहिये जिहि आधार ।
को काटै ता डार को, बैठै जाही डार ॥ 30