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"कमरे में कबूतर / उमेश पंत" के अवतरणों में अंतर

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09:40, 12 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

मेरे कमरे में कबूतर आया
अच्छा लगा कि
कोई तो है साथ मेरे
बहुत देर से बैठा-सा वो
कुछ सोच रहा था
जो सोच रहा था
मुझे मालूम नहीं
मैने देखा उसे नज़र भर के
सोचा चलो कुछ बात करूँ
जैसे ही उठा
और कुछ बोला
वो उड़ गया खिड़की से लपकता
पलक झपकते ही

बाहर गर्मी है
वो लौट कर आएगा ज़रूर
उसकी फ़ितरत भी है
इन्सानों-सी
मुझको लगता था कि
कोई तो अलहदा है यहाँ ।
अच्छा हुआ इस बार
परिंदे ने नसीहत दे दी ।