भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपराधों का बयान / ओएनवी कुरुप" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओएनवी कुरुप |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> आज राह चलते दिख…)
(कोई अंतर नहीं)

10:30, 22 अप्रैल 2011 का अवतरण

आज राह चलते दिखाई दी दीनता
और सुनाई पड़ा रुदन
मेरा पीछा करती है
जो अब भी मेरे दिल में हैं
वह पीडा
शायद अदृश्य सलीब है
मेरी आत्मा की स्वर्णिम मूर्ति
उसे वहन करती हैं

इस दोरुखी जीवन में
मुश्किल रास्तों से
गुज़रते हुए
मुझे दिल की बात
सुनाई देती है

दूसरों के दर्द में
तेज़ होती है मेरे दिल की धड़कन
शायद यही है मेरा बल
और मेरी दुर्बलता

मै अच्छे दिनों और अच्छे लोगों का
स्वप्न देखता हूँ
शायद यही है मेरी बीमारी
क्या इसका कोई इलाज है

छूने पर बजते तार-सी
कस गई हैं मेरी नसें
मेरे मन से रिसते हैं गीत
जैसे घाव से रिसता है ख़ून

गीत रिसते हैं मेरे भीतर से

मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स