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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 18" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 171 से 180 तक'''
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जो पै रहनि रामसों नाहीं।
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तौ नर खग कूकर सम बृथा जियत जग माहीं।।
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काम, क्रोध, मद, लोभ, नींद, भय, भूक, प्यास सबहीके।
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मनुज देह सुर-साधु सराहत, सो सनेह सिय-पीके।।
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सुर, सुजान, सुपूत, सुलच्छन गनियत गुन गरूआई।
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बिनु हरिभजन इँदारूनके फल तजत नहीं  करूआई ।
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कीरति  कुल करतूति, भूति भलि, सील सरूप सलोने ।
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तुलसी प्रभु अनुराग-रहित जस सालन साग अलोने।
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18:53, 27 अप्रैल 2011 का अवतरण