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विनयावली / तुलसीदास / पद 171 से 180 तक / पृष्ठ 3

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पद संख्या 175 तथा 176

  (175)
जो पै रहनि (लगन) रामसों नाहीं।
तौ नर खग कूकर सम बृथा जियत जग माहीं।।

काम, क्रोध, मद, लोभ, नींद, भय, भूक, प्यास सबहीके।
मनुज देह सुर-साधु सराहत, सो सनेह सिय-पीके।।

सुर, सुजान, सुपूत, सुलच्छन गनियत गुन गरूआई।
बिनु हरिभजन इँदारूनके फल तजत नहीं करूआई ।

कीरति कुल करतूति, भूति भलि, सील सरूप सलोने ।
तुलसी प्रभु अनुराग-रहित जस सालन साग अलोने।

(176)
राख्यो राम सुस्वामी सों नीच नेह न नातो।
एते अनादर हूँ तोहि ते न हातो।1।

जोरे नये नाते नेेह फोकट फीके।
देहके दाहक, गाहक जीके।2।

अपने अपनेको सब चाहत नीको।
मूल दुहूँको दयालु दूलह सीको।3।

 जीवको जीवन प्रानको प्यारो।
सुखहूको सुख रासो बिसारो।4।

कियो करैगो तोसे खलको भलो।
ऐसे सुसाहब सों तू कुचाल क्यों चलो।5।

तुलसी तेरी भलाई अजहूँ बूझै।
राढ़उ राउत होत फिरिकै जूझै।6।