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"इत्तेफ़ाक़ / अख़्तर-उल-ईमान" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अख़्तर-उल-ईमान }} {{KKCatNazm}} <poem> दयार-ए-ग़ैर में कोई जहा…) |
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21:36, 27 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
दयार-ए-ग़ैर में कोई जहाँ न अपना हो
शदीद कर्ब<ref>दुख</ref> की घड़ियाँ गुज़ार चुकने पर
कुछ इत्तेफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं
किसी एक ऐसी जगह से हो यूँ ही मेरा गुज़र
जहाँ हुजूम-ए-गुरेज़ाँ<ref>भागती हुई भीड़</ref> में तुम नज़र आ जाओ
और एक-एक को हैरत से देखता रहे
उर्दू से लिप्यंतर : लीना नियाज
शब्दार्थ
<references/>