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"कुहू / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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21:16, 5 मई 2011 के समय का अवतरण

दिन बीते कभी इस शाख पर
किसी कोयल को कूकते सुना था ।

तब से जब भी इस ओर आती हूँ
बार-बार कानों में वही 'कुहू'
गूँजती हुई पाती हूँ ।

जैसे मेरे मन के लिए
एक बार पा लेना ही हमेशा की थाती है ।
या वह कोयल की कूक है
जो अमराई में छा ही जाती है ।