भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीठ / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अनंत क़दमों भर साम…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:31, 6 मई 2011 के समय का अवतरण

अनंत क़दमों भर सामने के विस्तार की ओर से नहीं
पीठ की ओर से ही दिखता हूँ मैं हमेशा जाता हुआ

जाते हुए मेरी पीठ के दृश्य में
पूर्वजों का जाना दिखता है क्या ?

तीन क़दमों में तीन लोक नापने की कथा
रखी हुई है कहीं, पुराने घर के ताख़े में
निर्वासन के तीन खुले विकल्पों में से चुनकर
अपना निर्विकल्प,
अब मैं ही था सुनने को
निर्वासन का मंद्रराग

यदि धूप और दूरियों की बात न करें हम
जाता हुआ मैं सुंदर दिखता हूँ ना ?