भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ताज़गी की तलाश / शैलप्रिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलप्रिया |संग्रह=अपने लिए / शैलप्रिया }} {{KKCatKavita}} <poe…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:11, 9 मई 2011 के समय का अवतरण
मौसम
बार-बार छलता है
हर बार
नया ताना-बाना बुनता है
पिछलग्गुओं की तरह
घिसे-पिटे शब्दों से
की जाती है बातों की मरम्मत
लेकिन कब तक
बैसाखियों के सहारे रणनीति
बनाई जा सकती है
अपनी आकाँक्षाओं की बलवती
क्रीड़ा-कौतुक में शामिल
तुम जियोगी इसी तरह
तुम्हारी चेतना छलती जाएगी हर बार
तुम नयापन ढूँढ़ते हुए
पुरातत्वों में शामिल
एक शव की तरह खोजती रहोगी नयापन