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"मातम से बचा / समीर बरन नन्दी" के अवतरणों में अंतर

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रेंग रहे हैं चारो ओर
 
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पाँवहीन पंखहीन  
 
पाँवहीन पंखहीन  
जंतु-अजन्तु
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जंतु-अजंतु
  
 
उन्ही में न रहते हुए  
 
उन्ही में न रहते हुए  

01:00, 17 मई 2011 के समय का अवतरण

निकल आए हैं --
केंचुआ, घोंघा, बेग-मेंढक
कमरे के कोने में भरा पड़ा बीटल
झींगुर, दीवार पर छिपकली ।

रेंग रहे हैं चारो ओर
पाँवहीन पंखहीन
जंतु-अजंतु ।

उन्ही में न रहते हुए
दरवाज़े के बाहर-भीतर
हो रहा हूँ --

चारों ओर उदारीकरण के मातम से बचा हुआ हूँ ।