भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"संझा-बेला / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / क…)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:46, 24 मई 2011 के समय का अवतरण

संझा-बेला
ढलते सूरज की जोत हमारी आँखों में

हम सिंधु-पार जाने की
बातें करते हैं
इस ओर हवा में
पीले पत्ते झरते हैं

घर है उदास
कुछ नई कोंपलें अभी आईं हैं शाख़ों में

यह धार नदी की -
उस पर सूरज लेटा है
मछुआरे ने भी
अपना जाल समेटा है

दिन है अपना
यह सूरज भी तो रहा अनूठा लाखों में

फूलों की छुवन -
उसी के सँग थी भोर हुई
दोपहर नदी में पैठी-
धूप अछोर हुई

इसके पहले
बरसों-बरसों हम रहे अँधेरे पाखों में