भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात दर्जिन थी कोई / प्रतिभा कटियार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा कटियार }} {{KKCatKavita}} <poem> रात दर्जिन थी कोई सी…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:25, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
रात दर्जिन थी कोई
सीती थी दिन के पैरहन
के फटे हिस्से...
वो जाने कैसा लम्हा था
धागे उलझ गए सारे
सुईयाँ भी गिरकर खो गईं ।
दिन का लिबास
उधड़ा ही रहेगा अब...