भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ताबूत की आख़िरी कील / नील कमल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:19, 6 जून 2011 के समय का अवतरण
पीछे मुड़ कर
देखना भी
ज़रूरी होता है
जब कहीं नज़र न आती हो
आगे की राह
पत्तों का झरना
फूलों का मुरझा जाना
और
रास्ते में खाई
ठोकरों को याद करना भी
मुनासिब होता है कभी-कभी,
सोनार की सौ मार के बाद
लोहार का एक वार भी
ज़रूरी होता है
मेरे पीछे एक रात है ,लम्बी,
आगे छटपटाती सुबह,
लोहार के एक वार से पहले
मैं रात को दफ़न करना चाहता हूँ,
मैं उस ताबूत की
आख़िरी कील बनना चाहता हूँ ।