भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अकेली स्त्री का दुख / नील कमल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:41, 10 जून 2011 के समय का अवतरण
अकेली स्त्री की
कलाई पर,
वक़्त की टिक्-टिक्
नहीं सुनी किसी ने
मौसम की हर करवट
कैलेण्डर के पन्नों से बाहर
पेड़ों पर उगते,
पेड़ों से झरते,
पत्तों में महसूस करती है
अकेली स्त्री,
कपास के ढेर से
बुरे दिनों की यादों के गर्द
अलगाती, वह
अच्छे दिनों की यादों को
नर्म उजले फाहों में
समेट लेना चाहती है ।