भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अम्माँ की रसोई में / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रमेश तैलंग | |रचनाकार=रमेश तैलंग | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=काठ का घोड़ा टिम्मक टूँ / रमेश तैलंग |
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} |
21:21, 10 जून 2011 के समय का अवतरण
हल्दी दहके, धनिया महके,
अम्माँ की रसोई में ।
आन बिराजे हैं पंचायत में
राई और जीरा ।
पता चले न यहाँ किसी को
राजा कौन फकीरा ।
सिंहासन हैं ऊँचे सबके
अम्माँ की रसोई में ।
आटा-बेसन, चकला-बेलन,
घूम रहे हैं बतियाते ।
राग-रसोई बने प्यार से
ही अच्छी, ये समझाते ।
रूखी-सूखी से रस टपके
अम्माँ की रसोई में ।
थाली, कड़छी और कटोरी,
को सूझी है मस्ती।
छेड़ रही है गर्म तवे को
छूर-छूर हँसती-हँसती।
दिखलाती हैं लटके-झटके
अम्माँ की रसोई में।