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"चन्द्रग्रहण को देखकर / राजेन्द्र कुमार" के अवतरणों में अंतर
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चाँद पूरनमासी का
कितना छविमान हुआ करता है
किन्तु आज इस पर / छाया जो पड़ गई / मेरी इस धरती की,
कौन अपाहिज-सा दिखता है यह
फीकी-सी
दिखती है सारी की सारी छवि
और जब कि / केवल छाया ही धरती की
पड़ी है ।
बेचारा यह
कैसा दिखेगा जब
उतरेगी इस पर हमारी यह धरती
वास्तव में !