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"सियार और चाँदनी रात / विमल वनिक" के अवतरणों में अंतर

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03:15, 22 जून 2011 का अवतरण

पूरनमासी कि एक रात
बचपन के गाँव कि वीथी पर
मुझे एक भी ब‘च्चा नहीं दिखा !
देखो, किस तरह चुपचाप सब सो रहे हैं—--
युगल हंस कि तरह—

आँचल में संसार बाँधे हुए—
परम शांत !

इस मŠध्यरा˜त्रि में
नदी किनारे, घाट पर
नौकाएँ बहुत अकेली हैं,
कोई भी इस पार से उस पार
जाने वाला नहीं,

दूर कहीं एक शृगाल शब्ददहीन
जाग रहा है उन सबके लिए
जो बँधे पड़े हैं
किसी और ग्रह के !
  
मूल बंगला से अनुवाद : चंद्रिमा मजूमदार और अनामिका