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"दिल के लुट जाने का ग़म कुछ भी नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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जा रहे मुँह फेर कर भौंरे गुलाब!
 
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01:38, 25 जून 2011 का अवतरण


दिल के लुट जाने का गम कुछ भी नहीं!
आप ही सब कुछ हैं, हम कुछ भी नहीं!

मुस्कुरा उठती थीं हमको देखकर
आज उन भौंहों पे ख़म कुछ भी नहीं!

मौत का डर प्यार में क्यों हो हमें!
ज़िन्दगी मरने से कम कुछ भी नहीं!

हम समझते थे कि सब कुछ हैं हमीं
मर के यह निकला कि हम कुछ भी नहीं

जा रहे मुँह फेर कर भौंरे गुलाब!
आप की ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं!