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"अपने हाथों से ज़हर भी जो पिलाया होता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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ज़िन्दगी तूने कभी रुख़ तो मिलाया होता! | ज़िन्दगी तूने कभी रुख़ तो मिलाया होता! | ||
− | हम पलटकर न कभी देखते दुनिया की | + | हम पलटकर न कभी देखते दुनिया की तरफ़ |
आपने बीच से परदा तो उठाया होता! | आपने बीच से परदा तो उठाया होता! | ||
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दिल को देता कोई वह प्यार की धड़कन फिर से | दिल को देता कोई वह प्यार की धड़कन फिर से | ||
− | जब हमें | + | जब हमें आपने आँखों में बिठाया होता |
जो न मिलते यहाँ हँसती हुई आँखों से गुलाब | जो न मिलते यहाँ हँसती हुई आँखों से गुलाब | ||
कोई इस बाग़ में रोने भी न आया होता | कोई इस बाग़ में रोने भी न आया होता | ||
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01:32, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
अपने हाथों से ज़हर भी जो पिलाया होता!
ज़िन्दगी तूने कभी रुख़ तो मिलाया होता!
हम पलटकर न कभी देखते दुनिया की तरफ़
आपने बीच से परदा तो उठाया होता!
आप सुन लेते कभी अपनी भी धड़कन उसमें
हाथ दिल पर मेरे धीरे से लगाया होता!
या तो दुनिया में बनाया नहीं होता हमको
या बनाकर न कभी ऐसे मिटाया होता!
दिल को देता कोई वह प्यार की धड़कन फिर से
जब हमें आपने आँखों में बिठाया होता
जो न मिलते यहाँ हँसती हुई आँखों से गुलाब
कोई इस बाग़ में रोने भी न आया होता