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"आज तो शीशे को पत्थर पे बिखर जाने दे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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ज़िन्दगी कैसे कटी तेरे बिना, कुछ मत पूछ | ज़िन्दगी कैसे कटी तेरे बिना, कुछ मत पूछ | ||
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तेरे छूते ही तड़प उठता है साँसों का सितार | तेरे छूते ही तड़प उठता है साँसों का सितार |
01:35, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
आज तो शीशे को पत्थर पे बिखर जाने दे
दिल को रो लेंगें, ये दुनिया तो सँवर जाने दे
ज़िन्दगी कैसे कटी तेरे बिना, कुछ मत पूछ
यों तो कहने को बहुत कुछ है, मगर जाने दे
तेरे छूते ही तड़प उठता है साँसों का सितार
अपनी धड़कन मेरे दिल में भी उतर जाने दे
जी तो भरता नहीं इन आँखों की ख़ुशबू से, मगर
ज़िन्दगी का बड़ा लंबा है सफ़र, जाने दे
सुबह आयेगा कोई पोछने आँसू भी गुलाब!
रात जिस हाल में जाती है, गुज़र जाने दे