भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये | बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये | ||
− | देखिये बात क्या बने, कुछ तो | + | देखिये बात क्या बने, कुछ तो बनाके कह गये |
कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये | कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या! | आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या! | ||
− | कह न | + | कह न सके थे जो कभी, मस्ती में आके कह गये |
भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया | भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया |
02:20, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये
देखिये बात क्या बने, कुछ तो बनाके कह गये
कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये
जीने की बेबसी को हम सुर में सजाके कह गये
आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या!
कह न सके थे जो कभी, मस्ती में आके कह गये
भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया
फिर भी जो अनकहा था वह पलकें झुकाके कह गए
काँटों भरे गुलाब को कोई बड़ा बताये क्यों
माना कि बात वह भी कुछ, ख़ुशबू उड़ाके कह गए