भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरी चुप्पी भी उनको भा ही गयी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
  
 
अब तो छाया भी साथ छोड़ रही  
 
अब तो छाया भी साथ छोड़ रही  
धूप जीवन के सर पे आ ही गयी
+
धूप जीवन की सर पे आ ही गयी
  
 
ख़ाक़ होकर भी खिल रहे हैं गुलाब  
 
ख़ाक़ होकर भी खिल रहे हैं गुलाब  
 
मौत इसमें भी मात खा ही गयी
 
मौत इसमें भी मात खा ही गयी
 
<poem>
 
<poem>

02:26, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


मेरी चुप्पी भी उनको भा ही गयी
यह उदासी भी रंग ला ही गयी

है अँधेरा ही अँधेरा सब ओर
ज़िन्दगी फिर भी मुस्कुरा ही गयी

यों तो हर चीज़ से खिँचे हैं हम
क्या करेंगे जो कोई भा ही गयी!

कोई पहुँची नहीं किनारे तक
प्यार की हर लहर वृथा ही गयी

अब तो छाया भी साथ छोड़ रही
धूप जीवन की सर पे आ ही गयी

ख़ाक़ होकर भी खिल रहे हैं गुलाब
मौत इसमें भी मात खा ही गयी