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"आ, कि अब भोर की यह आख़िरी महफ़िल बैठे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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रंग खुलता है तभी तेरी पँखुरियों का, गुलाब!
 
रंग खुलता है तभी तेरी पँखुरियों का, गुलाब!
जब कोई लेके इन्हें, इनके मुक़ाबिल बैठे
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जब कोई लेके इन्हें, उनके मुक़ाबिल बैठे
 
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02:53, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


आ, कि अब भोर की यह आख़िरी महफ़िल बैठे
पहले तू बैठ, तेरे बाद मेरा दिल बैठे

तेरी दुनिया थी अलग, तेरे निशाने थे कुछ और
क्या हुआ, हम जो घड़ी भर को कभी मिल बैठे!

मैं सुनाता तो हूँ, ऐ दिल! उन्हें यह प्यार की तान
पर सुरों का वही अंदाज़, है मुश्किल, बैठे

दो घड़ी चैन से बैठे नहीं हम यों तो कभी
देखिये, क्या भला इस दौड़ का हासिल बैठे

रंग खुलता है तभी तेरी पँखुरियों का, गुलाब!
जब कोई लेके इन्हें, उनके मुक़ाबिल बैठे