भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जल गहरे नापते मछेरे / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:48, 11 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

सागर के गहरे जल
          नापते मछेरे
साँसों के आसपास रेतीले डेरे
 
पालों में भरी हवा
किस तरह पुकारे
ड़ूब गये सूरज के
पिछले उजियारे
 
बूढ़ी चट्टानों पर रातों के फेरे
 
लहरों के उजले पल
रह गये किनारे
नौकाएँ खोज रहीं
अँधे पखवारे
 
बैठे हैं द्वीपों पर मुँह-ढँके अँधेरे
 
सोच रहे डरे डाँड़
टूटी पतवारें
अपना यह कटा जाल
किस जगह उतारें
 
मछली के छल देखो - खा गई सबेरे