भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साँझ गई सीपियाँ बटोर / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:59, 11 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
भोर हुई
मछुआरे तट हुए कठोर
धूप को उतार गई काँपती हिलोर
जाल लाद कंधों पर
चले थके पाँव
पीछे चटटानों को
छोड़ गई नाव
दूर तक हवाओं के दर्द हैं अछोर
बूढ़े आकाशों में
पंखों की भीड़
अंधे सन्नाटों में
डूब गए नीड़
द्वीपों तक फैल गए सूरज के शोर
रेतीले टीले पर
हाँफते खजूर
झेलते रहे दिन-भर
लहरों को क्रूर
साँझ लौट गई शंख-सीपियाँ बटोर