भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"'मन के तार तुझी से बाँधे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडे…)
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
'फिर-फिर वृन्दावन में आ के  
 
'फिर-फिर वृन्दावन में आ के  
 
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
 
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये हमारे प्रेम-कथा के  
+
प्रिये हमारी प्रेम-कथा के  
 
पृष्ठ रहे जो सादे'
 
पृष्ठ रहे जो सादे'
  

00:45, 20 जुलाई 2011 का अवतरण


'मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!'
 
'साज भिन्न हो समय-समय का
राग न छूट सका नव वय का
सुर अब भी है वही हृदय का
लाख जोग-जप साधे
 
'वेणु बजाता वंशीवट  पर
फिरता हूँ नित यमुना-तट पर
तुझे देखता हूँ पनघट पर
नयन खोलकर आधे
 
'फिर-फिर वृन्दावन में आ के
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये हमारी प्रेम-कथा के
पृष्ठ रहे जो सादे'

'मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!'