भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण
 
नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण
  
सागर की लहरों पर थिरक-थिरक कर
+
सागर की लहरों पर थिरक-थिरककर
 
नाच रही है किरण-बालिका थर-थर
 
नाच रही है किरण-बालिका थर-थर
 
पिछल रहीं जल पर चंचल पगतलियाँ  
 
पिछल रहीं जल पर चंचल पगतलियाँ  
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
लो खाली हो गया लुढ़ककर मधु-घट
 
लो खाली हो गया लुढ़ककर मधु-घट
 
फैली अरुण वारुणी शून्य डगर में  
 
फैली अरुण वारुणी शून्य डगर में  
फिरते चारों ओर मधुप पक्षी ढूँढ़ते शरण  
+
फिरते चारों ओर मधुप-पक्षी ढूँढ़ते शरण  
  
 
टिकीं सदा यौवन-रँगरलियाँ किनकी!
 
टिकीं सदा यौवन-रँगरलियाँ किनकी!

02:30, 20 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण

सागर की लहरों पर थिरक-थिरककर
नाच रही है किरण-बालिका थर-थर
पिछल रहीं जल पर चंचल पगतलियाँ
मुक्त पवन में उड़ता अंचल फरफर
श्याम अलक, पलकें मद-लोहित, मुख छवि पीत-वरण

ले तारों के स्वर्णिम प्याले कर में
बाँट रही वह दूर-दूर अंबर में
लो खाली हो गया लुढ़ककर मधु-घट
फैली अरुण वारुणी शून्य डगर में
फिरते चारों ओर मधुप-पक्षी ढूँढ़ते शरण

टिकीं सदा यौवन-रँगरलियाँ किनकी!
याद शेष है अब केवल उस दिन की
सिसक रही तम-गुहा, धरा-अंचल में
कभी व्योम पर नाची प्रभुता जिनकी
दशों दिशाओं में निर्भय तम-शिशु करते विचरण

नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण