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"द्वारिका में जब कोयल बोली / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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याद आ गईं प्यारी गायें
 
याद आ गईं प्यारी गायें
वृन्दावन के कुंज, लताएँ
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वृन्दावन के कुंज, लतायें
 
सोचा-- 'अबकी ब्रज में जायें
 
सोचा-- 'अबकी ब्रज में जायें
 
पुन: खेलने होली
 
पुन: खेलने होली

04:41, 22 जुलाई 2011 का अवतरण


द्वारिका में जब कोयल बोली
याद आ गयी मनमोहन को राधा की छवि भोली
 
याद आ गईं प्यारी गायें
वृन्दावन के कुंज, लतायें
सोचा-- 'अबकी ब्रज में जायें
पुन: खेलने होली
 
'कितनी पुलक उठेगी मैया!
दौड़ मिलेंगे प्रिय 'बल भैया' 
नाचेगी फिर 'ता-ता थैया'
ग्वाल-बाल की टोली'
 
तभी महाभारत ठनवाने  
आ पहुँचे सब सखा सयाने
घेर लिया जग की चिंता ने
मन की गाँठ न खोली

द्वारिका में जब कोयल बोली
याद आ गयी मनमोहन को राधा की छवि भोली