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"चार जुलाई के लिए / मंजुला सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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12:17, 8 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

देखो, छट रहे काले बादल,
छाये रहे रात भर घटाटोप,
धरती पर विषाद की चादर से!

तेरे दिव्य दर्श से पूर्व, विश्व
जगा है.कलरव करते खग - गण
पुष्प उठाते शीर्ष, मुकुट से,
सज्जित ओस कणों से, झूम तेरे स्वागत में.

झीले प्लावित प्रेम - सलिल से,
शत सहस्त्र कमलों की आँखें,
स्वागत तेरा करें ह्रदय से.

स्वागतम! सुस्वागतम हे देव तेज के!
नवागमन पर आज आपका स्वागत है,
हे सूर्य ! वर्षाते आज स्वातंत्र्य !
सोचो कितनी प्रतीक्षा करी विश्व ने,
खोजा तुम्हे हर देश - काल में
कुछ ने त्यागे गृह, स्नेह के बंधन,
गए खोजने तुम्हे, स्व निष्कासित,
निर्मम सिन्धु, आदिम जंगल में,
प्रति पग जीवन - मृत्यु का समर

आया फिर दिन, जब फलित हुआ संघर्ष,
और पूजा, प्रेम व त्याग,
हुए पूरे, स्वीकृत, परिपूर्ण
जागे तब तुम, शुभकारी, प्रसारते
ज्योति मुक्ति की, मानवता पर

अग्रसर हो, हे देव! अबाध स्व-पथ पर
जब तक प्रखर तेज तुम्हारा फैले न सर्वत्र
कण कण चमकाए न तेज तुम्हारा
जब तक सारे नारी- नर, उठाकर शीर्ष
न पाए स्वयं को बंधन मुक्त और
पाए वसंतोल्लास, पुनर्जीवन का!


स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित मूल अंग्रेज़ी रचना
To The Fourth Of July

Behold, the dark clouds melt away,
That gathered thick at night, and hung
So like a gloomy pall above the earth!
Before thy magic touch, the world
Awakes. The birds in chorus sing.
The flowers raise their star-like crowns-
Dew-set, and wave thee welcome fair.

The lakes are opening wide in love
Their hundred thousand lotus-eyes
To welcome thee, with all their depth.

All hail to thee, thou Lord of Light!
A welcome new to thee, today,
O sun! today thou sheddest LIBERTY!
Bethink thee how the world did wait,
And search for thee, through time and clime.

Some gave up home and love of friends,
And went in quest of thee, self banished,
Through dreary oceans, through primeval forests,
Each step a struggle for their life or death;

Then came the day when work bore fruit,
And worship, love, and sacrifice,
Fulfilled, accepted, and complete.
Then thou, propitious, rose to shed
The light of FREEDOM on mankind.

Move on, O Lord, on thy resistless path!
Till thy high noon o'erspreads the world.
Till every land reflects thy light,
Till men and women, with uplifted head,
Behold their shackles broken, and
Know, in springing joy, their life renewed!