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12:33, 8 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

चलते हैं एक बार वहीं, मन ! अपने असली घर की ओर
यहाँ विदेशी भूमि धरा की
क्यूँ यायावर से हम भटकें ?
ये सारे सृष्टि के जीव ,
और पांच तत्त्वों के भूत ,
हैं अनजाने ,ये न हमारे .
क्यूँ तू इनमे भूले खुद को ,
प्रेम करे अनजानों से, मूढ़ रे मन ?
क्यूँ आखिर भूले अपनों को ?

बढ सत-पथ पर ,मन !चढ़ बढ़ता जा ,
प्रेम सहित ज्योतिर्मय पथ पर .
पथ के साधन साथ उठा ले ,
सारे सद्गुण , सहज सम्हाले ;
दो दस्यु हैं महामार्ग पर ,
लोभ ,मोह तुझे चाहें लूट .
सतत संग रख तू अपने ,
ये प्रहरी अपनी रक्षा में ,
मन की शान्ति और नियंत्रण .
पावन संतों का संग कर ,
पथ के विश्रामालय जो ;
रुक ,सुस्ता ,उनसे दिशा ले
जब भी दुविधा तुझ को घेरे ,
बारे में उसके, जो रहा देख .
डर यदि लगे मार्गे पर तुझ को ,
जोर से गा तू प्रभु के नाम ;
वह है स्वामी पथ का तेरे ,
मृत्यु भी करे उसे प्रणाम .


स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित मूल अंग्रेज़ी रचना
LET US GO BACK

Let us go back once more, O mind, to our proper home
Here in this foreign land of earth
Why should we wander aimlessly in stranger's guise?
These living beings round about,
And the five elements,
Are strangers to you, all of them; none are your own.
Why do you so forget yourself,
In love with strangers, foolish mind?
Why do you so forget your own?

Mount the path of truth, O mind! unflaggingly climb,
With love as the lamp of lightyour way.
As your provisionon the journey, take with you
The virtues, hidden carefully;
For, like two highwaymen,
Greed and delusion wait to rob you of your wealth.
And keep besides you constantly,
As guards to shelter you from harm,
Clamness of mind and self-control.

Companionship with holy men will be for you
A wellcome rest-house by the road;
There rest your weary limbs awhile, askingyour way,
If ever you should be in doubt,
Of him who watches there.
If anything along the path should cause you fear,
Then loudly shout the name of God;
For He is ruler of that road,
And even Death must bow to him.